22 October 2015

विशेष : रोचक है संतानदात्री मां सिमसा का इतिहास, ऐसे हुई थी मंदिर की स्थापना

लडभड़ोल : : लडभड़ोल क्षेत्र की प्रसिद्ध संतानदात्री मां सिमसा का मंदिर लडभड़ोल से मात्र 9 किलोमीटर दूरी पर सिमस गांव में स्थित है, जो बैजनाथ मंदिर से 32 किलोमीटर दूर है। माता सिमसा का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां से दूर-दूर तक सुंदर नजारा देखने को मिलता है। बताया जाता है कि इस गांव में टोभा सिंह नामक व्यक्ति रहता था। महाशिवरात्रि वाले दिन वह तरड़ी (कंदमूल) खोदने के लिए अपने घर से करीब 3 किलोमीटर दूर नागण नामक स्थान पर गया। उसकी पहली चोट जमीन पर मारने से दूध बाहर निकल आया। यह देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि तरड़ी (कंदमूल)अच्छी है और अधिक मात्रा में निकलेगी। जब उसने दूसरी चोट मारी तो जमीन से पानी की धारा निकलने लगी और तीसरी चोट मारने पर जमीन से खून निकलने लग पड़ा, जिससे वह घबराया हुआ घर वापस आ गया।

माता ने रात को स्वप्न में आकर दिए दर्शन
रात को उसे स्वप्न में माता ने दर्शन दिए और कहा कि जिस बात से तू घबराया है, में उसी को हल करने आई हूं। तू प्रात: नहाकर जहां खुदाई कर रहा था वहीं पर जाना। वहां पर खुदाई करने से तुझे एक मूर्ति मिलेगी। उस मूर्ति को पालकी में सजाकर धूमधाम से लाना और जहां पर वह मूर्ति भारी लगने लगे वहीं पर उसकी स्थापना कर मंदिर बनवाना। प्रात: उठते ही यह किस्सा उसने अपने भाइयों को सुनाया। मां के आदेशानुसार दोबारा खुदाई करने पर उन्हें देवी की मूर्ति मिली, जिसकी लंबाई 7 वर्ष की कन्या के बराबर थी। यह मूर्ति आज भी मंदिर में मौजूद है। खुदाई के समय की 3 चोटें आज भी देखी जा सकती हैं।

स्वप्न में संतानरूपी वरदान बांटती हैं माता
मान्यता के अनुसार जिन भक्तों के यहां संतान नहीं होती है, वे नवरात्र में माता सिमसा के दर्शनों के लिए आते हैं। स्त्रियां जिन्हें संतान की चाह होती है, वे मंदिर के प्रांगण में अपना बिछौना बिछाकर सो जाती हैं। यह मां का चमत्कार है कि जब औरतें सो रही होती हैं तो नींद में मां सिमसा पूरे शृंगार में उन्हें दर्शन देकर आज्ञा अनुसार स्वप्न में फल बांटती हैं। जिस स्त्री को जैसा फल मिलता है, उसे वैसी ही संतान प्राप्त होती है। मान्यता के अनुसार एक बार सपना होने के बाद जो महिला फिर से सपने के लिए अपना बिछौना बिछाकर सो जाती है, उसे कुछ ही देर बाद चींटियों के काटने जैसा अहसास होने लगता है। यही नही, उसके शरीर पर लाल रंग के दाग भी उभरने लगते हैं।

धूमधाम से मनाया जाते है चैत्र व शरद नवरात्र नवरात्रे
यहां हर वर्ष चैत्र व शरद नवरात्र के दौरान मेले लगते हैं और मेला कमेटी व युवक मंडल सिमस की ओर से भंडारे लगाए जाते हैं। इस साल भी यहां चैत्र नवरात्र महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।



कैसे पहुंचे सिमसा माता :
अगर आप हिमाचल प्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य के निवासी है तो हम आपको बता दे आपको सिमसा माता मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। इसलिए आपको भारत के किसी भी हिस्से से आना है तो आप रेल द्वारा सबसे पहले पठानकोट (पंजाब) स्टेशन पर पहुंचिए उसके बाद वहां से आपको बस द्वारा हिमाचल के बैजनाथ आना होगा। पठानकोट से आसानी से आपको बैजनाथ के लिए बस मिल जाएगी। पठानकोट से बैजनाथ की दूरी लगभग 130 किलोमीटर है और सुबह 4 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक आपको हर आधे घंटे बाद पठानकोट से बैजनाथ के लिए बसें मिलेगी। बैजनाथ पहुँचने के बाद आपको सिमसा माता मंदिर के लिए लोकल बस या टैक्सी मिल जाएगी। बैजनाथ से सिमसा माता मंदिर की कुल दूरी लगभग 32 किलोमीटर है। इस रूट को कुछ इस तरह समझिये : पहले भारत के किसी भी हिस्से से रेल द्वारा पठानकोट >> फिर पठानकोट से बस द्वारा बैजनाथ >> फिर बैजनाथ से बस बदलकर लोकल बस या टैक्सी द्वारा सिमसा माता मंदिर पहुंचिए

बस द्वारा :
अगर आप बस द्वारा दिल्ली और चंडीगढ़ से आना चाहते है तो दिल्ली के महाराणा प्रताप बस अड्डे से आपको बैजनाथ के लिए बस पकड़नी होगी। दिल्ली से बैजनाथ से कुल दूरी लगभग 550 किलोमीटर है| बस यह दूरी पूरी करने में लगभग 13 घण्टे लगाती है। फिर बैजनाथ पहुंचकर आपको सिमसा माता के लिए लोकल बसें मिल जाएगी। सिमसा माता मंदिर बैजनाथ से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है। ऐसे में चंडीगढ़ से आने के लिए आपको सेक्टर 43 के काउंटर नंबर 16 से बैजनाथ के लिए बस पकड़नी होगी। चंडीगढ़ से बैजनाथ की दूरी लगभग 350 किलोमीटर है।

मंदिर में लग सकते है इतने दिन :
माता के दरबार में आने वाली महिलाओं को मंदिर के फर्श पर सोना होता है। मान्यता के अनुसार सोने के दौरान महिला को माता सपने में आकर फल देती है। इसलिए महिला को मंदिर में रहने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं होता बल्कि जब तक माता सपने में आकर फल नहीं दे देती तब तक महिला को मंदिर में रहना होता है। महिला के सौभाग्य होने पर पहले नवरात्रे में ही सपने में माता के दर्शन हो जाते है। तो वह महिला उसी दिन पूजा करने के बाद अपने घर लौट सकती है। सपने में माता के दर्शन नहीं होने पर महिलाओं को सातवें या आठवें नवरात्रे तक भी इंतज़ार करना पड़ सकते है। इसलिए मंदिर में पहले से नौवें नवरात्रे तक कितने भी दिन लग सकते है। हालाँकि अगर बीच में महिला मंदिर से वापिस अपने घर जाना चाहती है तो वह पूजा छोड़कर जा सकती है।

घर से लाएं यह सामान :
संतान प्राप्ति के लिए मंदिर आने वाली महिलाओं को घर से एक स्टील का लौटा, 2 कंबल, 1 दरी व एक लाल रंग का घागरा (पेटीकोट) लाना होता है। यह घागरा महिला को मंदिर में पूजा के समय पहनना पड़ता है। दरी व कंबल महिला को मंदिर में सोने के लिए होते है। संतान प्राप्ति के लिए आने वाली महिलाओं के साथ पति का आना अनिवार्य नहीं होता है। अगर महिला का पति चाहे तो आ सकता है मगर अनिवार्यता नहीं है। केवल महिला का आना अनिवार्य है। नीचे दिए गए फोटो में आप घागरा व स्टील के लौटे का उपयोग देख सकते है।

रहने की व्यवस्था :
महिलाओं के साथ आने वाले अन्य पारिवारिक सदस्यों के लिए मंदिर कमेटी की तरफ से रहना, खाना, पीना सब मुफ्त में होता है तथा सोने के लिए कंबल वह रजाई भी कमेटी द्वारा उपलब्ध करवाए जाते है। नवरात्रों के दौरान मंदिर कमेटी तथा स्थानीय युवक मंडल द्वारा मुफ्त में भंडारे लगाए जाते है जो 10 दिन तक चलते है इसलिए रहने व खाने की चिंता बिलकुल न करें।

मौसम का हाल:
पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण मौसम रात को ठंडा हो जाता है इसलिए अपने साथ हलके गर्म कपड़े जरूर लाएं। सितम्बर या अक्टूबर माह के दौरान होने वाले शरद नवरात्रों में दिन में तो मौसम सुहावना बना रहता है लेकिन रात होने पर ठंड बढ़ जाती है। चैत्र नवरात्रों में मौसम गर्म रहता है इसलिए उस दौरान गर्म कपड़ों की जरुरत नहीं पड़ती। अतः अगर आप शरद नवरातों में संतान प्राप्ति के लिए मंदिर आने की सोच रहे है तो गर्म कपड़े जरूर साथ लाएं।


विशेष सुचना : ध्यान रहे की सिमसा माता मंदिर में संतान प्राप्ति का यह त्यौहार साल में दो बार चैत्र नवरात्रों व शरद नवरात्रों में ही आयोजित होता है। अगर आपको मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए आना तो सिर्फ नवरात्रों में ही आएं। नवरात्रों में मंदिर आने के लिए कोई एडवांस बुकिंग नहीं की जाती है। महिलाएं पहले, दूसरे या तीसरे किसी भी नवराते में आ सकती है। पहले नवराते में आने पर भीड़ कम रहती है इसलिए मंदिर में सीट आसानी से मिल जाती है। दूसरे, तीसरे नवरात्रे के साथ मंदिर आने वाली निसंतान महिलाओं की भीड़ भी बढ़ती जाती है।


>> पिछले साल आये थे सिमसा माता, अब दिया जुड़वा बच्चों को जन्म, मिलिए लुधियाना के इस दम्पति से

>> 7 दिन सिमसा माता की भक्ति में रही थी लीन, अब दिया जुड़वा बच्चों को जन्म, मिलिए ईशा से





loading...
Post a Comment Using Facebook