22 October 2015

झकझोर कर रख देगी लडभड़ोल अस्पताल पर लगे ताले को देखती हुई "बेबस मां" की यह तस्वीर

लडभड़ोल : पिछले कई साल से लडभड़ोल क्षेत्र के लोगों की पीड़ा कोई सरकार नहीं समझ पा रही है। पहले भी लडभड़ोल क्षेत्र की सेहत के सवाल का उत्तर बैजनाथ रेफर करना था और अब भी। नई सरकार का खौफ भी लडभड़ोल के सरकारी अस्पताल में नहीं दिख रहा है। लाखों की पत्थरों वाली इमारत में रहने वाले सरकारी हाकिमों के दिल भी पत्थरों के हो गए हैं। धरती के जिंदा भगवानों की संवेदनाओं ने खुदकुशी कर ली है।

लडभड़ोल के स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र को देखकर महसूस हो रहा है कि वे भी उन मंदिर की मूरत की तरह पत्थर के हो गए हैं जिन्हे सिर्फ चढ़ावे के लिेए बनाया गया है। ऐसा ही एक सवेंदनशील मामला लडभड़ोल के अस्पताल में पेश आया है जहाँ एक बीमार बच्चे के माँ-बाप इलाज़ को लेकर स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र लडभड़ोल में डॉक्टर को तलाशते नज़र आये। अपने लाडले को गले से लगाकर अस्पताल के गेट पर लगे ताले को देखती हुई बेबस मां की यह तस्वीर किसी को भी झकझोर कर रख देगी।

रविवार रात को दलेड़ गांव के दिनेश शर्मा अपनी पत्नी के साथ बीमार बच्चे को कंधे पर उठाकर इस आस में लडभड़ोल अस्पताल पहुंचे की उनके लाड़ले को यहां इलाज़ मिल जायेगा। बच्चे को 104 डिग्री का तेज़ बुखार था। उस समय रात के साढ़े दस बज रहे थे। अस्पताल में सन्नाटा था। वहां कोई डॉक्टर या नर्स ड्यूटी पर नहीं थे। कोई चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी भी नहीं था। मां बच्चे को लेकर अस्पताल परिसर में बैठी रही तो पिता हॉस्पिटल में इधर से उधर बेचैन घूमता रहा। लेकिन उसे मदद करने वाला कोई नहीं मिला। आधा घंटा इंतजार करने के बावजूद भी वहां पर कोई नहीं आया। अंत में बच्चे को एक स्थानीय निजी डॉक्टर के पास ले जाया गया जहां उसका इलाज किया गया। अगर समय रहते सहायता नहीं मिलती तो बच्चे की हालत और भी गंभीर हो सकती थी।

अब सवाल ये की नियम, कायदे और क़ानून से बेखबर अस्पताल प्रबंधन ने अस्पताल में ताला क्यों जड़ दिया। जब क्षेत्र के स्थानीय निवासी प्रकाश राणा विधायक बने तब लोगों को उम्मीद जगी की सब कुछ ठीक होगा, लेकिन अधिकारी नहीं सुधरने का मूड बनाए बैठे हैं। नई नवेली प्रदेश सरकार भले ही चिकित्सा व्यवस्था में बदलाव के तमाम दावे कर रही हो लेकिन डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है।





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