22 October 2015

लडभड़ोल तहसील के प्रति कांग्रेस सरकार की बेरुखी अब किसी परिचय की मोहताज नहीं

लडभड़ोल : जब किसी शहर या गांव में राजनीतिक व्यवस्था के कारण मूलभूत सुविधाएं भी नही मिल रही हो और प्रशासन असहाय दिख रहा हो तो जनता का त्राहिमाम करना लाजिमी है। यही हालात आजकल हमारे लडभड़ोल में बने हुए हैं। लडभड़ोल के विकास कार्यों पर लगा विराम अब न तो किसी परिचय का मोहताज है और न ही निकट भविष्य में यहां इस राजनीतिक रस्साकशी के थमने की कोई आस है। हैरानी यह कि लडभड़ोल के विकास पर लगे इस विराम से सारे लडभड़ोलवासी चिंतित है, लेकिन जिन्हें इसके लिए गंभीर होना चाहिए, वह वर्ग आज भी इससे बेखबर है।


नेताओ के पास जनता के हितों के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं
राजनीति के गिरते स्तर को अवलोकित करती जोगिंद्रनगर कांग्रेस व भाजपा के प्रमुख दलों के मुखियों की एक दूसरे के प्रति की जा रही टिप्पणियों से स्पष्ट है कि अब नेताओं के पास जोगिंद्रनगर व लडभड़ोल की जनता के हितों के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है बल्कि उनके लिए स्वयंहित ही सर्वोपरि है। ‘तू चोर मैं सिपाही’ का खेल खेलते ये नेता भूल चुके हैं कि वोट काम व विकास से हासिल होते हैं न कि एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने से। दोनों पार्टियों के छोटे नेताओं द्वारा एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए इनके आर्टिकल रोज़ अख़बारों में आप पढ़ सकते है। प्रदेश में चुनाव अति निकट आ चुके हैं, लेकिन कल तक पार्टियां अपनी कलह में ही उलझी हुई थी। आज न पार्टियों के पास चुनावों के लिए कोई स्थानीय मुद्दे हैं और न ही वादे। विकास का मुद्दा गुम हो चुका है।

हालात बाद से बदतर
लडभड़ोल पिछले एक दशक से सरकारी योजनाओं के हाशिए पर पड़ा हुआ है। विकास कार्यों के लिए धन के अभाव में यह क्षेत्र लगातार पिछड़ता जा रहा है। कसूर मात्र इतना है कि लडभड़ोल के वाशिंदों ने उसी पार्टी का प्रतिनिधि चुन कर विधानसभा भेजा है, जिसकी सरकार प्रदेश में नही बनी। अपनों की बेरुखी का दंश झेलते व विकास कार्यों पर विराम की आंच में झुलसता लडभड़ोल क्षेत्र नेताओं की गुटबाजी से उबरना चाहता है, परंतु नेताओं के प्रतिशोध, अहंकार व महत्त्वाकांक्षाओं के आगे बेबस व लाचार है। हालात इस कद्र बदतर हो चुके हैं कि अब तो लडभड़ोल मूलभूत सुविधाओं के लिए ही तरस रहा है।

विकास के मुद्दे गुम
हर पार्टी द्वारा यहां राजनीतिक आधार तराशा जा रहा है, इस बीच इस लडभड़ोल के विकास के मुद्दे कहीं गुम हैं। टूटी-फूटी सड़कें व अधर में लटकी कई अन्य निर्माणाधीन योजनाएं राजनीतिक द्वंद के कारण मृत शैया पर पड़ी चीख रही हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारों में उनकी सुनवाई कहां? लडभड़ोल के कुछ नए प्रत्याशियों द्वारा राजनीतिक लीक से परे हटकर लडभड़ोल के इस मर्ज का इलाज ढूंढा जा रहा है, लेकिन राजनीतिक आंधियों के आगे उनका वश कहां..?

कॉलेज भवन का निर्माण अभी भी शुरू नही
गड्ढों से भरी सड़के संबंधित विभाग की निष्क्रियता एवं राजनीतिक उदासीनता की जीती जागती मिसाल बन कर रह गई है। विभाग इन सड़कों पर लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद भ्रष्टाचार के कारण अपनी बदहाली को नहीं बदल पाया है। राजनीतिक चहेतों के हाथों में लड्डू थमा कर बजट की कमी का रोना आम बात हो गई है। यह वर्तमान व पूर्व की दोनों सरकारों पर सवालिया निशान लगाता है। करोड़ों की लागत से बनने वाले कॉलेज भवन का निर्माण अभी शुरू भी नही हो पाया है, लेकिन शासन अभी भी यहां गंभीर नहीं दिखता।

अस्पताल में कोई भी डॉक्टर नहीं
पूरी लडभड़ोल तहसील से लोग अस्पताल में अपना इलाज कराने आते हैं लेकिन लोगों का दर्द कम होने के बजाय बढ़ जाता है क्योंकि लडभड़ोल का अस्पताल बदहाली का शिकार है। अखिर कब तक हमारा लडभड़ोल इन तमाम अव्यवस्थाओं को झेलता रहेगा। यहां से जिसने भी अपना राजनीतिक कैरियर चमकाना है, चमकाए, लेकिन लडभड़ोल के विकास के पहलुओं की अनदेखी करके हरगिज नहीं।

कांग्रेस के सत्ता में आते ही लगा विकास कार्यों पर विराम
चार साल पहले कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने पर पिछली सरकार के लंबित कार्यों पर तो विराम लगा ही था, नए कार्यों की भी कहीं कोई शुरुआत नहीं हुई है। आज राज्य में कहीं एम्स, तो कहीं इंजीनियरिंग व मेडिकल संस्थान खुलने की बातें हो रही हैं, वहीं लडभड़ोल फरियादी चेहरा बनाकर हसरत भरी निगाहों से राज्य सरकार से इसके लिए सिर्फ मूलभूत सुविधाओं के लिए बजट की गुहार लगा रहा है।

चुल्ला प्रोजेक्ट अभी भी अधूरा
हाल ही के कुछ वर्षों में राज्य सरकार ने कुछ बनाने की कवायद शुरू की है, कई जगह कॉलेज भवनों का निर्माण भी पूरा हो गया है , परंतु हमारे प्रतिनिधियों की कार्यकुशलता तो देखिए कि चार वर्ष बाद भी लडभड़ोल के कॉलेज का निर्माण तो दूर अभी जगह भी फाइनल नही करवा पाए, यह निश्चित रूप से तकलीफदेह है। कई सालों से चुल्ला में विद्युत् प्रोजेक्ट देखने का लोगों ने एक सपना देखा था, लेकिन इसका अंजाम भी कुछ अलग नहीं हुआ। सरकारें बदलती रहीं और इस परियोजना को तवज्जो न देकर राजनीतिक दुश्मनी निभाती रहीं। 16 सालों में 450 करोड़ की जगह 1600 करोड़ खर्चने के बाद भी यह परियोजना निर्माणधीन ही है।

किसी पार्टी ने नही किया कोई बड़ा काम
किसी भी पार्टी ने आज तक ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया जिसे उंगलियो पे गिनाया जा सके। जनता के मनोरंजन के लिए पिछले 50 वर्षो में लडभड़ोल में ना तो कोई उद्यान और ना ही कोई प्राकृतिक स्थान और ना ही कोई पिकनिक स्पॉट का चयन किया गया और ना ही उसका विकास किया गया, लडभड़ोल आज भी 50 वर्षो पूर्व जहा खड़ा था वही खड़ा हे।

त्रिवेणी महादेव है एक तोहफा
विधायक ठाकुर गुलाब सिंह ने जनता के लिए त्रिवेणी महादेव मंदिर को विकसित करके तोहफा जरुर दिया है। लडभड़ोल तहसील में आज केवल वही ऐसा रमणीक क्षेत्र हे जहा परिवार के साथ जा कर प्राकृतिक छंटा का आनन्द उठाया जा सकता हे| रज्जु-झूले पर बैठकर ब्यास नदी को नज़दीक से निहारकर भागदौड़ भरी जिंदगी में शुकुन के पल व्यतीत कर सकते हे।

हर कोई चुनाव लड़ने को बेचैन
भ्रष्ट व नकारा अफसरों को आश्रय तो दोनों ही राजनीतिक पार्टियां देती आई हैं जो जनता के हितों के लिए योजनाएं बनाने के बजाए नेताओं की चापलूसी करने में समय व्यतीत करते हैं व बदले में लाभयुक्त पदों पर बने रहने में कामयाब हो जाते है। गत दिनों में विभिन्न पार्टियों के टिकटार्थियों की लम्बी भीड़ व हर किसी की चुनाव लड़ने की बेचैनी को देख कर यह साफ जाहिर होता है कि स्वयं निर्माण के लिए राजनीति सबसे उम्दा व्यवसाय है, जो दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

राजनितिक उपेक्षा से थक चुके है हम लोग
राजनेताओ को केवल वोट के समय जनता और कार्यकर्ताओ की याद आती हे, चुनाव के बाद कार्यकर्ताओ और आम जनता को अपने कार्यो के लिए चप्पले घिसते देखा जा सकता हे । गरीबी का फायदा उठाकर अपना स्वार्थ साधने वाले गरीबों की अस्मत के खरीददारों की कमी नहीं है। लडभड़ोल में पूर्व व वर्तमान की सरकारों के दौरान चरम पर पहुंची गुटबाजी का फायदा उठा कर नौसिखिए भी इस राजनीतिक समंदर में तैरने लगे हैं। कई शहीदों का यह लडभड़ोल अब इस राजनीतिक उपेक्षा से थक चुका है। अब लडभड़ोल के सियासतदानों को इस राजनीतिक जंग को छोड़कर विकास के बारे में सोचना चाहिए।

सेल्फ मोटीवेट होना होगा
शासन की कमियों को उजागर करता बेहद ही छोटा लेख है।जिसे अमली जामा पहनाने के लिए युद्ध स्तर पर छोटी छोटी इकाईयों से शुरुआत करनी होगी । इस विषय को कुछ समर्पित लोग ही समझ सकते है । छोटी छोटी इकाईयों संगठित होंगी तो ज्यादा और प्रभावशाली तरीके से काम करेंगी । दाल तो हर जगह ही काली है। अतः नागरिको का सेल्फ मोटीवेट होना इस पथ पर आवश्यक है। तभी हम किसी निर्णायक स्थिति पर पहुँच सकते है।

कुर्बानी तो देनी ही पड़ेगी
लडभड़ोल को विकास के नए मानकों तक पहुंचाने के लिए जरुरी है कि राजनीतिज्ञ गुटबाजी की फितरत से बाहर निकलकर काम करें। जनता अगर सच्चे मायने में अपने लडभड़ोल से प्यार करती हे और उसके विकास के लिए कुर्बानी देने को तैयार हे तो ही यहाँ का विकास संभव हे नहीं तो हमेशा की तरह विकास के लिए हम मुंह ताकते रह जाएंगे।





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