22 October 2015

लडभड़ोल तहसील के युवा बाइक चालकों की जिंदगी पर भारी पड़ रही तेज रफ्तार व लापरवाही

लडभड़ोल : जिस युवा शक्ति के बल पर लडभड़ोल अपनी वैश्विक पहचान बनाने का सपना देख रहा है, सड़क दुर्घटनाओं में उसके कुछ युवक हर साल अपना जीवन गंवा रहे है। लेकिन अफसोस, न तो जनता के नुमाइंदे और न ही खुद युवक एक के बाद एक हो रहे सड़क हादसों से कोई सीख ले रहे हैं। सड़क सुरक्षा के नियमों को धत्ता बताकर अपनी शान की जिंदगी के पीछे कई युवाओं ने अपनी जान गवां दी है। जान गवाने वाला यह वह आयु वर्ग है जिस पर परिवार और समाज की उम्मीदें टिकी होती हैं।

लेकिन सोचने योग्य बात यह है, कि इन कोशिशों के बावजूद सड़क दुर्घटनाएं है कि कम होने का नाम नहीं ले रही है। फिर सवाल उठना लाजिमी कि गलती आखिर किसकी है, युवाओं की सरपट भागती बाइकें, परिवार के लोग जो अपने नाबलिग बच्चों के हाथों में मौत की चाबियाॅं सौंपते है, या प्रशासनिक अधिकारी, जो सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाने में खानपूर्ति के रूप में नियमों को लागू कर पाता है।

दोष कही न कही सबसे पहले उन परिवारवालों का है जो अपने नवजवान बच्चों की जिद् के आगे घुटने टेक देते है और उन बच्चों को सड़क पर खूनभरी नंगी दौड़ दौड़ाने के लिए बाइक थमा देते है। जब देश में कानून का अपना एक निश्चित दायरा होता है फिर सड़क सुरक्षा के कानून को तोड़ने की पहली प्रक्रिया यही से शुरू होती है। परिवार वाले बाइक की चाबी तो बच्चों को थमा देते है, लेकिन शायद सड़क सुरक्षा और जीवन रक्षा के मूलभूत सिद्वांत सिखाना भूल जाते है या लाजिमी नहीं समझते है। फिर चक्र चालू होता है, मौत की दौड़ का, जल्दी मौत को गले बांधने का।

लडभड़ोल की युवा पीढ़ी अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की दौड़ में पिछड़ता नहीं देख सकती है, यह उसकी मनोवैज्ञानिक रूचि बन चुकी है। फिर वह सड़क पर रफ्तार का जादूगर बनने की फिराक में अपने मित्रों से रेस लगाता है और कहीं न कहीं उसकी एक भूल परिवार को सदमें में ढकेल देती है।

बाइक चालक बगैर हेलमेट चलना अपना शौक मानते हैं। खासकर युवा वर्ग व महिलाएं तो हेलमेट लगाने से पूरी तरह बचते नजर आते हैं। जिसमें अक्सर हादसे होने की स्थिति में जान जाने की संभावना काफी बढ़ जाती है। इतना ही नहीं अक्सर बाइक पर ट्रिपल राइडिंग का सिलसिला भी नहीं थम पा रहा है। यह लापरवाही अक्सर हादसों का सबब बनती है।

दुर्घटना में किसी के व्यक्ति या युवक के मरने से नुकसान तो होता ही है उसके घरवाले कई साल पीछे चले जाते हैं। घरवालों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। शुभचिंतक दो-चार दिनों तक दुख में शामिल होते हैं पर उसके बाद पूरी जिंदगी पीड़ित परिवार को ही झेलना पड़ती है। उनके नुकसान की भरपाई कभी नहीं हो पाती। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि जिस पीढ़ी को ट्रैफिक नियमों के लिए जागरूक होना चाहिए वही अपने जीवन को इस तरह गंवा रही है।

हाल ही के कुछ वर्षों की बात की जाए तो लडभड़ोल तहसील में कई लोगों ने सड़क दुर्घटना में अपनी जान गवाईं है। लेकिन किसी विशेष स्थान की बात की जाये तो खद्दर पंचायत व उसके आसपास के गांव में सबसे अधिक युवकों ने तेज़ रफ्तार के कारण बाइक हादसों को अंजाम दिया है। इन सड़क हादसों में कई युवाओं की जिंदगियां समाप्त हो चुकी है। इन सभी दुर्घटनाओं की वजह लापरवाही से बाइक चलाना था। इससे साफ है कि बाइक सवारों के लिए सख्ती से ट्रैफिक नियम का पालन कराया जाये। माता-पिता नाबालिगों को बाइक-स्कूटी देने से परहेज करें तो इन दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

खद्दर पंचायत का नाम लिखने के पीछे हमारा मकसद वहां के युवकों की साख गिरना नहीं है। यहाँ मुद्दा यह खड़ा होता है कि लडभड़ोल के युवक कब अपने जीवन को लेकर गंभीर होंगे..? और अगर वह अपने और अपने स्नेहीजनों का ख्याल रखने में भी समर्थ नहीं है तो फिर वह सामाजिक जिम्मेदारियों को कैसे निभाएंगे। सड़क सुरक्षा को लेकर लडभड़ोल में जिस संस्कृति का पनपना जरूरी था वह आज तक देखने को नहीं मिल रहा है। फ़िलहाल वर्तमान समय में युवा अपनी संजीदगी के अभाव में मौत को गले लगाने में पीछे नहीं दिख रहें है।

अगर सड़क हादसों को रोकना है तो हम सभी को अपनी-अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी के साथ निभानी होगी। सड़क हादसों को रोकने के लिए वाहन चलाने वालों की भूमिका अहम है। थोड़ी-सी सावधानी बरतने पर ऐसे कई हादसों से बचा जा सकता है। कई हादसे तमाम सुरक्षा के बावजूद हो जाते हैं। इनको पूरी तरह रोका तो नहीं जा सकता लेकिन थोड़ी जागरुकता और थोड़ी सावधानी से इन पर काफी हद तक अंकुश तो लगाया ही जा सकता है।

Written By AMIT BARWAL





loading...
Post a Comment Using Facebook