
लडभड़ोल: 1600 करोड़ रुपये खर्च करने पर भी चुल्ला गांव में बन रही 100 मैगावाट ऊहल तृतीय परियोजना करीब 16 साल बाद भी अधूरी है। इससे अब निर्माण कार्य देख रही निजी कंपनी व परियोजना का कार्यदेख रही व्यास वैली कॉर्पोरेशन की कार्य प्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
टनल का काम कर रहे मजदूरों और निजी कंपनी के आपसी तालमेल के अभाव से परियोजना का निर्माण कार्य अभी भी अधर में लटका हुआ है। पांच मई 2000 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस परियोजना का शिलान्यास किया था। उस दौरान परियोजना का निर्माण कार्य वर्ष 2009-10 में पूरा होने का अनुमान लगाया गया था।
उस समय परियोजना की अनुमानित लागत 431 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन वर्ष 2016 तक परियोजना पर करीब 1600 करोड़ रुपये का खर्चा होने का अनुमान ब्यास वैली कॉर्पोरेशन द्वारा बताया जा रहा है। परियोजना में 16 अक्टूबर वर्ष 2002 में मच्छयाल में पहला ब्लास्ट कर निर्माण कार्य शुरू किया गया था तथा अप्रैल 2003 से भूमि अधिकरण का काम शुरू कर दिया गया था। जो वर्ष 2007 में करीब-करीब पूरा भी हो चुका था। ब्यास वैली कॉर्पोरेशन को परियोजना का निर्माण कार्य करवाने का जिम्मा सौंपा गया था। इसके लिए करीब 100 से अधिक अधिकारी भी तैनात किए गए थे।
कॉर्पोरेशन द्वारा परियोजना का काम शुरू में वर्ष 2003-2008 तक सत्यम कंपनी द्वारा किया गया। जिसे बाद में निर्माण कार्य कान्टीनेटल कंपनी को सौंपा गया। इस कंपनी ने भी वर्ष 2010 में अपने हाथ खड़े कर दिए। मौजूदा समय अबीर कंपनी द्वारा 9.2 किलोमीटर लम्बी टनल का निर्माण कार्य किया जा रहा है, लेकिन डेढ़ किलोमीटर का काम अभी भी बचा हुआ है।
कंपनी द्वारा 0.2 किलोमीटर प्रतिमाह कंकरीट का काम ही पूरा किया जा रहा है। इससे यह कार्य अप्रैल 2017 तक भी पूरा न होने का अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि परियोजना का पावर हाउस व रेजर वायर का काम कई वर्ष पहले ही पूरा हो चुका है। लेकिन टनल का निर्माण कार्य पूरा न हो पाने के कारण तमाम अन्य कार्य सफेद हाथी बने हुए हैं। परियोजना का काम तय समय पर शुरू न होने के कारण प्रदेश सरकार को भी करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है।
ब्यास वैली कॉर्पोरेशन के प्रबंधक सीएस चौहान का कहना है कि निजी कंपनी और मजदूरों के आपसी तालमेल की कमी के कारण टनल का काम लटका हुआ है। अप्रैल 2017 में इस परियोजना को शुरू करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
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