
लडभड़ोल : लडभड़ोल का सरकारी अस्पताल जो दूसरों का मोहताज बना है। यहां न तो पूरे चिकित्सक हैं और ना ही कर्मचारी। ऐसे में हर छोटी-बड़ी घटना के चलते मरीज को रेफर करने के अलावा पास कोई चारा नहीं होता। वैसे तो सरकार मरीजों को अधिक से अधिक सुविधाएं देने का दम भरती हैं, लेकिन हालात ऐसे हैं कि अभी तक सरकारी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं।अब ऐसे में मरीजों का चेकअप और देखरेख राम भरोसे है।
सफ़ेद हाथी है अस्पताल
लडभड़ोल क्षेत्र में आए दिन कोई न कोई दुर्घटना होती रहती है। अस्पताल में गंभीर रूप से घायल मरीजों के लिए कोई भी व्यापक प्रबंध नहीं हैं। उन्हें सिर्फ खानापूर्ति करके बैजनाथ रेफर कर दिया जाता है। कई बार स्थिति ज्यादा खराब होने के कारण मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है। लडभड़ोल का यह अस्पताल डॉक्टरों की भारी कमी के चलते सफेद हाथी साबित हो रहा है। लडभड़ोल वासी समय-समय पर इसकी मांग उठा चुके हैं, लेकिन समस्या आज भी ज्यों की त्यों है।
रात को नहीं मिलता मामूली सा इलाज
डेढ़ दर्जन पंचायतों के हजारों लोगों स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाला एकमात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लडभड़ोल खुद बहुत ज्यादा बीमार है। करीब दस साल पहले लडभड़ोल के पीएचसी को सीएचसी का दर्जा मिला था लेकिन लगता है क्षेत्र के लोगों की बदकिस्मती ही है कि इस सीएचसी में एक पिएचसी जैसी भी सुविधा भी नही है। पिछले काफी दिनों से यहां शाम के चार बजे के बाद सुबह नौ बजे तक छोटी सी बीमारी जैसे कि पेट दर्द, उल्टी-दस्त, बुखार आदि का का प्राथमिक उपचार भी संभव नही है। कई दिनों से देर-सवेर आने वाले किसी भी बिमारी से ग्रस्त लोगों को यहां से बिना उपचार के ही बैरंग लौटना पड़ता है। यहां इस तरह की कई घट्नाएं बीत चुकी हैं।
महिला का हुआ अंतिम संस्कार
उधर पिछले कल घटी घट्ना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस भी अस्पताल पहुंची और शव को पोस्मार्टम के लिये रात को ही जोगेंद्रनगर ले गई थी जहां से सोमवार को पोस्टमार्टम के बाद पलिस ने अंतिम संस्कार के लिये शव परिजनों को सौंप दिया। सोमवार दोपहर बाद परिजनों द्वारा शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मृतक मधु के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि उनके 13 वर्षिय बड़े बेटे वासु जमवाल ने दी, इस समय वहां पर मौजूद लोगों की आँखे नम थी।
कल हुआ था एक और वाक्या
उधर रविवार को ही सुबह करीब दस बजे पेट में असहनीय दर्द से पिड़ित एक प्रवासी मजदूर मनोज कुमार अपने दो साथियों की मदद से उपचार हेतू अस्पताल पहुंचा था लेकिन डाक्टर न होने के कारण उसे बैरंग ही लौटना पड़ा था। मनोज के साथी मजदूरों रविन्द्र कुमार व अजीत ने बताया कि जब वो मनोज को उठाकर अस्पताल ले गए तो वहां के सभी दरवाजे बंद थे और 15-20 मिनट तक इंतजार करने के बाद उन्हें वापिस ही लौटना पड़ा, उन्होने जब 108 एम्बुलेंस की मदद मागीं तो जवाब मिला कि लडभड़ोल की 108 एम्बुलेंस खराब है और दूसरी जगह से एम्बुलेंस को आने में डेड से दो घंटे का समय लगेगा।
इस तरह की कई घट्नाएं पहले भी हो चुकी हैं, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में समय पर चिकित्सकों का ना मिलना क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है, अगर समय पर चिकित्सक और प्राथमिक उपचार मिल जाता तो शायद मधु की जान बच जाती। अस्पताल में समय पर चिकित्सकों का ना मिलना क्षेत्र के हर वर्ग के लोगों के लिये गंभीर चिंता का विषय है। :- विजय कुमार, प्रधान ग्राम पंचायत खद्दर
अस्पताल में स्टाफ की कमी के बारे में विभागीय उच्च अधिकारियों को अवगत करवाया गया है, सरकार के आदेशानुसार रिक्त पदों पर नियुक्ति कर दी जाएगी। लोगों को रविवार को पेश आई दिक्कतों की छानबीन की जाएगी। :- जीवानंद चैहाण, सीएमओ मण्डी।




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