लडभड़ोल : जोगिंदरनगर विधानसभा क्षेत्र को केंद्रीय विद्यालय की सौगात मिलना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। मगर जोगिंदरनगर में कहा पर केंद्रीय विद्यालय खोला जाये इसके लिए सभी क्षेत्रों के लोगों ने दम लगाना शुरू कर दिया है। लडभड़ोल क्षेत्र के कई समाजसेवी, अन्य दलों समेत अनेक लोग लडभड़ोल क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय खुलवाने के लिए प्रयासरत है। अब देखा जाना है की ऊँट किस करवट बैठेगा।
लडभड़ोल क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय खोलने की मांग नई नहीं है। कई सालों से लडभड़ोल क्षेत्र के लोगों का यह प्रमुख मुद्दा रहा है। लडभड़ोल क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय खोलना कोई मांग नहीं बल्कि एक जरुरत है। शिक्षा के नाम पर लडभड़ोल से हो रहे पलायन को सिर्फ इसी तरह रोका जा सकता है। जब लोग अपनी जिंदगी संवारने के लिए घरबार छोड़ने को मजबूर हो जाते है, तो यह पलायन है। यह सियासत का नहीं, तरक्की के लिए मजबूरी का पलायन है।
लडभड़ोल क्षेत्र के पलायन पर चिंता जताने वाले और उनके परिवार जोगिंदरनगर व बैजनाथ से लेकर देश के बड़े शहरों में बस गए, क्योंकि वो भी जानते हैं कि लडभड़ोल क्षेत्र के गांवों में रहकर न तो अपना जीवन संवार पाएंगे और न ही प्रतिस्पर्धा के बढ़ते माहौल में बच्चों को आगे बढ़ा सकेंगे। मुख्य बात यह की लडभड़ोल तहसील जोगिंदरनगर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा तो है मगर यहां पर सुविधाओं और संसाधनों का नेटवर्क क्यों नहीं पहुंचाया गया। क्या सभी बड़े स्कूल, अस्पताल और सरकारी संस्थान सिर्फ जोगिंदरनगर के लिए ही बने हैं.?
शायद वे भूल गए कि शहर की वजह से गांव नहीं, गांव की वजह से शहर हैं। लडभड़ोल से शहरों की ओर पलायन का सिलसिला भी कोई नया मसला नहीं है। गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होते जाने चलते रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों की ओर मुंह करना पड़ा। लडभड़ोल क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक दूसरा बड़ा कारण है। गांवों में शिक्षा के साथ-साथ जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम है।
शिक्षा और साक्षरता का अभाव पाया जाना ग्रामीण जीवन का एक बहुत बड़ा नकारात्मक पहलू है। गांवों में सरकारी तौर पर न तो अच्छे स्कूल ही होते हैं और न ही वहां पर ग्रामीण बच्चों को आगे बढ़ने के अवसर मिल पाते हैं। इस कारण हर ग्रामीण माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए शहरी वातावरण की ओर पलायन करते हैं। हालांकि निजी तौर पर आज लडभड़ोल क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन जब रोजगार प्राप्ति एवं उच्च-स्तरीयता की बात आती है तो ग्रामीण परिवेश के बच्चे शहरी बच्चों की तुलना में पिछड़ जाते हैं।
लडभड़ोल क्षेत्र के अधिकतर बच्चे अपने माता-पिता के साथ गांव में रहने के कारण माता-पिता के परम्परागत कार्यों में हाथ बंटाने में लग जाते हैं जिससे उन्हें उच्च शिक्षा के अवसर सुलभ नहीं हो पाते हैं। इस कारण माता-पिता उन्हें शहर में ही दाखिला दिला कर शिक्षा देना चाहते हैं और फिर छात्र शहरी चकाचौंध से प्रभावित होकर शहर में ही रहने के लिए प्रयास करता है जो पलायन का एक प्रमुख कारण है।
सवाल उठता है कि लडभड़ोल के गांवों में तरक्की की वो कौन सी राहें खोजी जाएं, जो यहां के लोगों की जिंदगी संवार दे और पलायन की पीड़ा से भी मुक्ति दिला दे। अगर लडभड़ोल क्षेत्र में यह केंद्रीय विद्यालय खुलता है तो निश्चित तौर पर मानिए, लडभड़ोल में सुविधाएं और संसाधन बढ़ेंगे और पलायन की बात अतीत हो जाएगी।
जोगिंदरनगर में मिनी सचिवालय, एस डी एम कार्यालय, नागरिक अस्पताल, राजकीय महाविद्यालय, सर्किट हाऊस, आयुर्वेद संस्थान, खेल स्टेडियम, आई टी आई, बस अड्डा, पार्किंग सुविधा, टयूरिजम का होटल, बेहतरीन प्राइवेट स्कूल, पुलिस थाना इत्यादि अनेकों सुविधाएं हैं। इस लेख में लिखी गयी बातों में कहीं पर क्षेत्रवाद की विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं है। हम सिर्फ "सबका साथ सबका विकास" के नारे को चरितार्थ करने की बात कर रहे है । ग्रामीण क्षेत्र भारतवर्ष का आधार हैं। अतः गांवों को प्राथमिकता देना अत्यन्त आवश्यक है।
22 October 2015
लडभड़ोल क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय खुलने पर ही होगा असल में सबका साथ सबका विकास
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