22 October 2015

लडभड़ोल का एक ऐसा गांव जहां आज भी निभाई जाती है सदियों पुरानी यह परम्परा

लडभड़ोल : लडभड़ोल क्षेत्र में कई पुराने रीती रिवाज आजकल खत्म हो रहे हैं लेकिन फिर भी लडभड़ोल क्षेत्र के कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहाँ पर कुछ रिवाज आज भी निभाए जाते हैं और पूरी परम्परा के साथ निभाए जाते है। आज हम लडभड़ोल क्षेत्र के एक ऐसे गांव की बात करेंगे जहाँ पुरे गांववासी एक साथ जंगल में ग्वाल खिचड़ी बनाते है। स्थानीय निवासियों की माने तो यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।

लडभड़ोल क्षेत्र की कथोन-पंचायत के जाहनू गांव के लोग आज भी गांव के पास एक साथ मिलकर ग्वाल खिचड़ी का आयोजन करते है। इस आयोजन में सभी लोग गांव के आसपास पशुओं को चराने के लिए मौजूद जगह पर खिचड़ी का आयोजन करते है। स्थानीय निवासियों का कहना है की पशुओं और ग्वालों की सुरक्षा तथा दुधारू पशुओं की बढ़ोतरी के पूजन किया जाता है। ग्वाल खिचड़ी का यह आयोजन होली के पश्चात 15 दिन के अंदर मनाया जाता है। इस दौरान की जाने वाली पूजा के दौरान महिलाओं द्वारा सांस्कृतिक संगीत भी गाया जाता है।

लडभड़ोल.कॉम से बात करते हुए जाहनू गांव के निवासियों ने बताया की हाल ही में इस ग्वाल खिचड़ी का आयोजन किया गया है। इसमें बच्चे ग्वाले तथा गोपियाँ बनकर खेलकूद करते है। बच्चे कटोरी में खिचड़ी, दूध, दही लेकर भागते है तथा गोपियाँ ग्वालों को उपले मारकर खिचड़ी छीनने की कोशिश करती है। अगर उपला किसी ग्वाले को लग जाये तो उसकी हार मान ली जाती है। इसी तरह सदियों से यह परम्परा निभाई जा रही है।

स्थानीय निवासियों का कहना है की इस ग्वाल खिचड़ी के आयोजन से इनकी गहरी आस्था जुड़ी हुई हैं और आज भी यह लोग इस आयोजन का उतना ही सम्मान करते हैं, जितना इनके पूर्वज किया करते थे। इस श्रद्धा के चलते सदियों पुरानी यह परम्परा आज भी इस गांव में देखी जा सकती हैं। लेकिन नई पीढ़ी के युवा लोग इस परम्परा को भूलने लगे है जोकि एक दुखद विषय है।



ग्वाल खिचड़ी बनाते हुए गांव वासी
सदियों पुरानी है परम्परा




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