लडभड़ोल : बगैर ड्राइविंग लाइसन्स, हेल्मिट के सड़कों पर बाइक चलाना जुर्म है। पर स्टंट का शौक, पैशन और बेतरतीब ड्राइविंग करने वाले नाबालिग तथा कुछ युवा न सिर्फ यह जुर्म कर रहे हैं, बल्कि वह खुद समेत राह चलते लोगों की ज़िंदगी भी खतरे में डाल रहे है है। इन किशोरों तथा बिना लाइसेंस युवकों से भी बड़े अपराधी अभिभावक है, जो बच्चों के शौक पूरा करने के लिए उन्हे कच्ची उम्र में ही बाइक सौंपकर लाडलों को मौत के सफर करने के लिए छोड़ दे रहे है। बच्चों की जिद पूरी करने के लिए वह उनके अलावा दूसरों की जान भी जोखिम में डाल रहे है।
ऊटपुर गांव में हुआ हादसा
ऐसा ही एक हादसा ऊटपुर गांव में पेश आया है। लडभड़ोल तहसील के ग्राम पंचायत ऊटपुर में मंगलवार शाम एक बाइक ( HP 29 A 8247) सवार ने वृद्ध महिला को टक्कर मारकर घायल कर दिया। वृद्ध की पहचान ऊटपुर गांव निवासी सीता देवी (73)के रूप में हुई है। सीता देवी ऊटपुर गांव में वावड़ी से पानी लेने जा रही थी यह हादसा हो गया। हादसे के बाद बाइक सवार मौके से फरार हो गया। परिजनों द्वारा घायल महिला को लडभड़ोल के स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र में ले जाया गया जहां महिला की गंभीर हालत को देखते हुए टांडा रेफर कर दिया गया है। पुलिस ने मामला दर्ज़ कर जाँच शुरू कर दी है।
आजकल के युवा हादसों से नहीं ले रहे कोई सीख
अब सवाल उठता है की जिस युवा शक्ति के बल पर लडभड़ोल अपनी वैश्विक पहचान बनाने का सपना देख रहा है, सड़क दुर्घटनाओं में उसके कुछ युवक हर साल अपना जीवन गंवा रहे है। लेकिन अफसोस, न तो जनता के नुमाइंदे और न ही खुद युवक एक के बाद एक हो रहे सड़क हादसों से कोई सीख ले रहे हैं। सड़क सुरक्षा के नियमों को धत्ता बताकर अपनी शान की जिंदगी के पीछे कई युवाओं ने अपनी जान गवां दी है। जान गवाने वाला यह वह आयु वर्ग है जिस पर परिवार और समाज की उम्मीदें टिकी होती हैं।
ऐसी दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कौन
लेकिन सोचने योग्य बात यह है, कि इन कोशिशों के बावजूद सड़क दुर्घटनाएं है कि कम होने का नाम नहीं ले रही है। फिर सवाल उठना लाजिमी कि गलती आखिर किसकी है, ऐसे युवाओं की सरपट भागती बाइकें, परिवार के लोग जो अपने नाबलिग बच्चों तथा बिना लाइसेंस के युवकों के हाथों में मौत की चाबियाॅं सौंपते है, या प्रशासनिक अधिकारी, जो सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाने में खानपूर्ति के रूप में नियमों को लागू कर पाता है।
सबसे ज्यादा दोष परिवारवालों का
दोष कही न कही सबसे पहले उन परिवारवालों का है जो अपने नवजवान बच्चों की जिद् के आगे घुटने टेक देते है और उन बच्चों को सड़क पर खूनभरी नंगी दौड़ दौड़ाने के लिए बाइक थमा देते है। जब देश में कानून का अपना एक निश्चित दायरा होता है फिर सड़क सुरक्षा के कानून को तोड़ने की पहली प्रक्रिया यही से शुरू होती है। परिवार वाले बाइक की चाबी तो बच्चों को थमा देते है, लेकिन शायद सड़क सुरक्षा और जीवन रक्षा के मूलभूत सिद्वांत सिखाना भूल जाते है या लाजिमी नहीं समझते है। फिर चक्र चालू होता है, मौत की दौड़ का, जल्दी मौत को गले बांधने का।
बाइक कोई हवाई जहाज नहीं जो उडान भरेगी
आजकल सबके पास पैसा है। बाइक खरीदना कोई बड़ी बात नहीं है। लडभड़ोल की युवा पीढ़ी अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की दौड़ में पिछड़ता नहीं देख सकती है, यह उसकी मनोवैज्ञानिक रूचि बन चुकी है। फिर वह सड़क पर रफ्तार का जादूगर बनने की फिराक में बाइक के साथ-साथ दूसरे लोगों की भी खतरे में डालते है। ऐसे लोगों को संभलना होगा, उन्हें समझना होगा की बाइक कोई हवाई जहाज नहीं जो तेज़ चलने पर उड़ान भर दे। आराम से चलने में ही भलाई है। ऐसे लापरवाही ही अक्सर ऊटपुर जैसे सड़क हादसों का सबब बनती है। जिसमें कई बेगुनाह लोग मारे जाते है या फिर बुरी तरह घायल हो जाते है।
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