22 October 2015

अपने ही घर में बेगाने हुए लडभड़ोल के गागल गाँव के कारगिल शहीद नायक मेहर सिंह

लडभड़ोल : शहीदों की शहादत पर भी देश के अंदर अलग कानून और राज्य सरकारें अलग-अलग राय रखती हैं। जिस शहीद को केंद्र सरकार और सेना ने कारगिल शहीद का दर्जा दे दिया, उसे अपने ही प्रदेश ने ठुकरा दिया।

केंद्र सरकार व सेना ने ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी छह सितंबर, 1999 को द्रास सेक्टर में शहीद हुए लड़भड़ोल के गागल गांव के नायक मेहर सिंह को कारगिल शहीद माना है, लेकिन अपने ही प्रदेश में न तो पूरा मान-सम्मान मिला, न ही कारगिल शहीद को मिलने वाले लाभ परिजनों को मिल सके। सरकार ने शहीदों की सूची में बेशक मेहर सिंह का नाम डाल दिया, लेकिन परिजनों की फरियाद कभी पूरा नहीं की।

इस मामले को अब 17 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इस बात का परिवार को आज भी रंज है। लडभड़ोल के मेहर सिंह ने छह सितंबर, 1999 को कारगिल युद्ध के बाद शहादत पाई थी, लेकिन इसके बाद भी उस समय के थल सेना अध्यक्ष वेद मलिक ने उन्हें कारगिल शहीद का दर्जा दिया था। इसके बाद मेहर सिंह के परिजनों को केंद्र सरकार से 10 लाख रुपए, जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ पांच लाख रुपए और सेना के तरफ से भी कारगिल शहीद के रूप में सभी लाभ मिले।

इसी तरह से प्रदेश सरकार ने भी उस समय अपने वादे के अनुसार शहीद के परिजनों को पांच लाख रुपए और शहीद की विधवा को सरकारी नौकरी देनी थी, लेकिन सरकार की तरफ कई महीनों बाद शहीद मेहर सिंह की विधवा को मात्र 2.90 लाख रुपए ही दिए गए। यही नहीं, विधवा राजो देवी को सरकार की तरफ से सरकारी नौकरी भी नहीं मिली। विधवा ने जब गैस एजेंसी की मांग की तो उसके आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि मेहर सिंह कारगिल शहीद नहीं हैं। हालांकि मेहर सिंह की पत्नी ने इसके बाद कई बार प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से संपर्क किया। कई बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटे, लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी।

शहीद की विधवा राजो देवी का कहना है कि उस समय उनके तीनों बच्चे छोटे थे, इसलिए वह ज्यादा महीनों तक दफ्तरों के चक्कर नहीं काट सकी और उन्होंने हार मान ली। उन्होंने बताया कि कि खुद थलसेना अध्यक्ष ने उन्हें आपरेशन विजय का प्रमाणपत्र दिया था, लेकिन हिमाचल सरकार ने कभी इसे स्वीकार ही नहीं किया। उधर, पूर्व सैनिक कल्याण निदेशक कार्यालय के उपनिदेशक मेजर विशाल सकलानी का कहना है कि मेहर सिंह का नाम कारगिल शहीदों की सूची में दर्ज है, लेकिन उनके परिजनों को कारगिल शहीद के लाभ क्यों नहीं मिले, इस बारे में पता करवाया जाएगा। मामले का अध्ययन करने के बाद परिजनों की बात सरकार के समक्ष रखी जाएगी।

मंडी के सेरी मंच पर बने कारगिल पार्क से भी शहीद मेहर सिंह का नाम गायब है, जबकि सरकारी फाइलों में उनका नाम दर्ज है। इसके साथ ही मेहर सिंह के परिजनों को विजय दिवस समारोह में मंडी भी बुलाया गया है।





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