लडभड़ोल: मनरेगा यानी गरीबों को रोजगार देकर उन्हें आर्थिक रूप से सबल बनाना। लेकिन जब इस योजना के तहत गरीब मेहनत करे और उसे मेनताना न मिले तो सोचिये उस पर क्या बीतती होगी। पहले तो कमरतोड़ परिश्रम और अब मजदूरी के लिए कार्यालयों के चक्कर|
ऐसा ही कुछ हाल है ऊटपुर पंचायत के लंघा गाँव के 65 वर्षीय प्यार चंद का|
प्यार चंद को करीब 1 साल से मनरेगा के किए कार्यों का पैसा नहीं मिला है| उन्होंने लडभड़ोल.कॉम से बात करते हुए बताया कि एक ओर जहां मंत्री व विधायक अपनी पैंशन व पगार बढ़ाने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर गरीब लोगों को उनकी मेहनत का पैसा नहीं मिल रहा है।
वह पिछले 1 साल से वे अपने कमाए पैसे के लिए सरकारी विभागों के चक्कर लगा-लगा कर थक चुके हैं लेकिन अब तक खाली हाथ ही वापस आए हैं|
इस उम्र में अब प्यार चंद के हालत ऐसे हो गए है की उनके पास बैंक तक जाने के लिए भी पैसे नहीं है |खाना खाने के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है |कहीं और काम करने लायक उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है | अब इस उम्र में जाये तो कहा जाये |
ग्रामीण लोगों की आर्थिक दशा सुधारने हेतु केंद्र प्रायोजित योजना मनरेगा एक अच्छा कदम है, लेकिन इस योजना में इस तरह का भ्रष्टाचार भी कम नहीं है|
प्यार चंद ने सरकार व सरकारी विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों से गुहार लगाई है की वह अपनी अपनी जिम्मेवारी निभाना सीखें तथा उन्हें उनकी मेहनत की कमाई को जल्दी से जल्दी जारी करें|
Posted By Amit Barwal (ऊटपुर)
22 October 2015
65 वर्ष की उम्र में लगाई थी 56 मनरेगा की दिहाडियां,एक साल से नहीं मिला पैसा
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