22 October 2015

लडभड़ोल के कुछ ऐसे गाँव जहाँ सड़क के अभाव में लगातार दम तोड़ रही ज़िंदगियाँ

लडभड़ोल : विकास के पोस्टर यहां के लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखते। हवादार कमरों में बैठे जनता के सेवक नेता व अधिकारी भी इनके लिए बेमानी हैं। हम बात कर रहे हैं लडभड़ोल तहसील की त्रेम्बली पंचायत के कडकुही और जहल गाँव की। इन गावों में अगर कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाने के लिए पालकी पर उठाकर ले जाना पड़ता है, ऐसे में सरकार द्वारा गांवों को सड़कों से जोड़ने के दावे धरे के धरे रह जाते हैं।

इस बात का प्रमाण बुधवार को उस समय देखने को मिला जब त्रेम्बली पंचायत के पदम सिंह निवासी गांव जहल के बीमार होने पर उपचार के लिए चिकित्सालय पहुंचाने के लिए ग्रामीणों को उसे पालकी पर उठाकर लाना पड़ा। 67 वर्षीय पदम सिंह पिछले कई दिनों से अस्थमा से पीडित थे तथा बुधवार रात को अचानक उनकी तबियत काफी खराब हो गई| गांव में सड़क न होने के कारण उन्हें रात को अस्पताल नही पहुँचाया जा सका | वीरवार सुबह स्थानीय लोगों ने उन्हें डोली में उठाकर त्रेम्बली पहुँचाया फिर वहां से उन्हे आयुर्वेदिक अस्पताल पपरोला में भर्ती करवाया गया है जहाँ उनकी हालत गंभीर बनी हुई है|

अभी पिछले महीने ही कडकुही के 55 वर्षीय प्रेम सिंह रात को अस्थमा का दौरा पडा था लेकिन सड़क न होने की वजह से उन्हें रात को अस्पताल नही ले जाया जा सका था क्योकि उनके घर से सडक के लिए पहाडो में चलकर 2 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है | अगले दिन सुबह प्रेम सिंह को डोली में उठाकर 2 किलोमीटर दूर सडक तक पहुंचाया गया था | समय पर उपचार नही मिलने के कारण दीवाली के दिन उनका निधन हो गया| 6 महीने पहले भी रिटायर फौजी पुरण चन्द की ज़िन्दगी के लिए सड़क अभिशाप बन गयी और इलाज़ के अभाव में उनका भी निधन हो गया था|

कुछ समय पहले नायक संजू राम जिन्होंने देशकी सेवा करते आपनी दोनों टागे गँवाई है उन्हें भी पालकी पर ले जाना पडा था| एक सैनिक की इससे बडी जिल्लत क्या हो सकती है| प्रदेश सरकार और PWD विभाग ने इतनी लापरवाही और संवेदनहीनता से काम किया की पांच साल में सिर्फ 500 मीटर ही सडक संजू राम के गांव कडकुही तक बन पाई जिसमे स्थानीय विधायक गुलाब सिंह और सांसद रामस्वरूप ने इस सड़क के लिए 6 लाख की राशि स्वीकृत भी की थी लेकिन विभाग बिलकुल नाकाम रहा|

इन गाँवों में आजादी के 70 वर्ष बीतने के बाद भी सड़क नसीब नहीं हो पाई है। इस कारण ग्रामीण आज भी रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं को पीठ पर लादकर ले जाने को मजबूर हैं। आपातकाल में स्थिति और भी बदतर हो जाती है लोगों का आरोप है कि इस बारे में गांव के लोगों ने कई बार विभाग के आला अधिकारियों से शिकायत की लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया|

जब भी विधानसभा या लोकसभा के चुनाव आते हैं तो क्षेत्र के नेता ऐसी पंचायतों को शीघ्र सड़क सुविधा के साथ जोडऩे के दावे करते हैं लेकिन स्थिति आज भी यह है कि ऐसे कई गाँव आज भी सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। समय आ गया है कि त्रेम्बली पंचायत के लोगों को अपने क्षेत्रों को सड़क सुविधा के साथ जोड़ने के लिए आंदोलन की राह पकड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।


बुजुर्ग को पालकी में बिठाते हुए स्थानीय लोग
पिछले महीने भी ऐसा ही एक वाकया पेश आया था
कच्चे रास्तो में सफर और मुश्किल हो जाता है
कब तक चलेगा ऐसा




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