लडभड़ोल : भारतीय समाज में कोई शुभ अवसर हो या मातम का। जब तक वाद्य यंत्र की धुन न गूंजे तब तक वह अधूरा ही माना जाता है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि अगल-अलग अवसरों पर अलग-अलग धुन में वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं। मगर आज यह कला और इसके कलाकार अपना अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। न तो सरकार इनकी ओर ध्यान देती है और न ही आज के युवा इसे अपनाना चाहते हैं।
घर-घर जाकर बजाते है शहनाई
मगर आधुनिकता के जमाने में लडभड़ोल क्षेत्र में शहनाई की धुन आज भी जिंदा है। हिमाचल की संस्कृति में आज कल चैत्र महिना चला है। इसे स्थानीय लोग बीहरू माह के रूप में मानते हैं। मान्यता के अनुसार, इस माह के दौरान शहनाई वादक घर-घर जाकर शहनाई बजाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी शहनाई की आवाज सुनते ही लोग अपने घरों से बाहर निकल आते हैं। शहनाई की आवाज का आनंद उठाते हैं। इसकी एवज में लोग उन्हें आटा, चावल, पैसे आदि देते हैं।
लडभड़ोल में गूंज रही शहनाई
कुछ ऐसा ही नजारा आजकल को लडभड़ोल के पुराने बाजार में देखने को मिला, जब तहसील मुख्यालय लडभड़ोल के नजदीकी गांव दलेड़ निवासी शहनाई वादक परस राम व ढोलक मास्टर राजकुमार लोगों के घरों में दस्तक देकर शहनाई व ढोलक बजा कर चैत्र माह के आगाज के बारे में शहनाई की की गूंज से लोगों को अवगत करवा रहे थे।
47 वर्षों से बजा रहे शहनाई
शहनाई वादक परस राम ने बताया कि कई पीढिय़ों से उनके परिवार में शहनाई बजाने का कार्य करते आ रहे हैं। पहले उनके दादा, पिता शहनाई बजाते थे और अब वे पिछले करीब 47 वर्षों से शहनाई बजाने का कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा शादी, जन्मदिन व अन्य शुभ अवसरों पर भी शहनाई बजाते हैं।
अस्तित्व बचने के करने होंगे प्रयास
डीजे के दौर में लुप्ति के कगार पर पर पहुंची इस प्रथा को आज की पीढ़ी पसंद नहीं करती। यही कारण है कि यह कला लुप्तता की कगार पर पहुंच चुकी है। बहरहाल शासन की उपेक्षा से इनका जीवन दयनीय बना हुआ है, साथ ही इस कला का अस्तिव भी समाप्त हो रहा है। समाज के लोगों का कहना है कि सरकार हर समाज के लिए कुछ न कुछ कर रही है। इसी तरह इनके समाज के लिए भी कुछ विशेष योजनाएं बनाए, जिससे ये समाज की मुख्य धारा में जुड़ सकें और कला का अस्तित्व बचा सकें।
देखें वीडियो :
22 October 2015
आधुनिकता के इस दौर में हमारे लडभड़ोल क्षेत्र में आज भी जिन्दा है शहनाई की धुन, वीडियो देखें
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