लडभड़ोल : भारत में बहुरूप धारण करने की कला बहुत पुरानी है। राजाओं-महराजाओं के समय बहुरूपिया कलाकारों को हुकूमतों का सहारा मिलता था लेकिन अब ये कलाकार और कला दोनों मुश्किल में है। इन कलाकारों का कहना है कि समाज में रूप बदल कर जीने वालों की तादाद बढ़ गई है। लिहाजा बहरूपियों की कद्र कम हो गई है।
लडभड़ोल क्षेत्र के कई गावों में आजकल लोगों को विभिन्न रूपों में बहरूपिये के दर्शन हो रहे हैं। राजस्थान के सीकर जिला का रहने वाला विक्की 9 वर्षो से यह कार्य कर रहा है। विक्की के पिता भी बहरूपिये के रोल करके ही अपने परिवार को गुजारा चलाते रहे हैं और पिता के बाद विक्की भी इस पारिवारिक पेशे से जुड़ा हुआ है। विक्की इस बहरूपिये के अपने खानदानी पेशे को खोना नहीं चाहता।
लडभड़ोल.कॉम से बात करते हुए विक्की ने बताया कि उसका मुख्य लक्ष्य लोगों का मनोरंजन करना है। पुराने वक्त में जिस तरह राजा महाराजा अपने महलों में अपने मनोरंजन के लिए बड़े- बड़े बहरूपिये को बुलाकर उनसे मनोरंजन करावाते थे और बदले में उन्हें सोने और चांदी के सिक्के देते थे मगर अब बहरूपिये गावों व शहरों में घूम कर लोगों का मनोरंजन करते हैं और बदले में लोग उन्हें आनाज, पैसे या कपड़े देते हैं।
विक्की हर रोज, राम, हनुमान, शिवजी, रावण श्याम व देवी रूप व देवताओं के रोल करता है और गावों में घूम कर लोगों का मनोरंजन करता है। बच्चे आजकल उनके आने का इंतजार करते रहते हैं। विक्की का कहना है की यह कला बहुत बुरे दौर से गुज़र रही है। सबसे ज़्यादा बहरूपिया कलाकार राजस्थान में ही हैं। पूरे देश में कोई दो लाख लोग हैं जो इस कला के ज़रिए अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं। पहले इस काम अच्छी कमाई हो जाती थी। लेकिन आजकल मनोरंजन के साधन अधिक होने के चलते पहले जैसी कमाई नहीं हो पाती।
बहरूपिये का धारण किये हुए विक्की
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