लडभड़ोल : बीजेपी की सरकारें बनने के बाद उत्तर भारत में गाय और गोवंश का मुद्दा प्राथमिकता पर है। गायों को लेकर इंसान मारे जा चुके हैं, लेकिन जब आवारा गायों की आती है तो हंगामा करने वाले गायब नजर आते हैं। लोगों द्वारा एक ओर गाय को माता का दर्जा देना और दूसरी ओर उसे डंडे, गालियां खाने और भूख से जूझने के लिए आवारा पशु के समान छोड़ देना किसी अपराध से कम नहीं है। सबसे पहले तो ऐसे गायपालकों को चिन्हित कर दंण्डित किया जाना चाहिए।
लडभड़ोल के मुख्य बाजार तथा स्कूल के आसपास दो दर्जन जानवर जिसमें गाय, बछड़े और बैल हैं, उन्हें सडकों पर आवारा छोड़ दिया गया है। उनके खाने, रहने और सुरक्षा-देखरेख का कोई जिम्मेदार नहीं है। कई निर्दयी लोग अपने जानवरों को आजाद कर देते हैं। ऐसा वो तब करते हैं जब वो किसी लायक नहीं रहते यानि कि उनसे दूध नहीं मिलता और वो अन्य कार्य में उपयोग नहीं आ सकते। पशुओं को इस तरह आवारा छोड़ना कानून के मुताबिक यह क्रूरता है।
कहने को तो ये पशु आजाद होते हैं लेकिन ये आवारा पशु की श्रेणी में आ जाते हैं। जब इनका कोई ठिकाना नहीं रहता तो ये इधर उधर सड़कों में घूमते हैं, किसानों की फसल चर जाते हैं या कई दोपहिया चाक इनकी चपेट में आकर घायल भी हो जाते है। लडभड़ोल के मुख्य बाजार में तो सड़कों पर इन आवारा पशुओं का जैसे कब्जा ही हो गया है जो रास्तों के बीच धरना मार कर बैठ जाते हैं जिससे वाहनों का आवाजाही तक बाधित हो जाती है।
लडभड़ोल में छोटी बड़ी दुकानों पर गाय की आकृति वाली प्लास्टिक की चंदा जमा करने वाली गुल्लकें रखी हुई हैं, जिन में दुकान पर आने वाले ग्राहक चंदे के नाम पर कुछ पैसे डालते हैं। एक दुकानदार से इस बारे में पूछा गया कि गौशाला चलाने वाली संस्थाओं के नुमाइंदे इन गुल्लकों को दुकान पर छोड़ जाते हैं और एक निश्चित समय में उस में डाली गई रकम निकाल कर ले जाते हैं। एक तरफ यह दुकानदार भी गुल्ल्क में गोमाता के लिए दान करते है दूसरी तरफ यही दुकानदार गाय माता के डंडा मारकर भगाते नजर आते हैं।
गौशाला चलाने के नाम पर ज्यादातर लोग किसी राजनीतिक दल से जुड़े लोग होते हैं, जो स्वयंसेवी संस्थाएं बना कर सरकारी अनुदान का जुगाड़ करने में माहिर होते हैं। सड़कों पर आवारा घूमती गायों और इन गुल्लकों को देख कर यह सवाल उठता है कि आखिर गौसेवा के नाम पर उगाहे जा रहे इस चंदे का इस्तेमाल कौन सी गायों की सेवा के लिए किया जाता है?
लडभड़ोल बाजार आये हुए अरुण, आकाश, हैप्पी, अंकु, रिंकू, टिंकू, राजीव, आशु आदि ने बताया की लडभड़ोल के जिस रास्ते से भी होकर गुजरा जाए, ऐसे दर्जनों आवारा जानवर मटरगश्ती करते मिल जाते हैं। ऐसे आवारा जानवरों के बीच से होकर लोग चलने को मजबूर हैं। लोगों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि पता नहीं नहीं कब कौन गाय की झुंड में से सींग मार कर घायल कर दे। इन्होने प्रशासन से जल्द से जल्द इन आवारा पशुओं से निजात दिलाने की गुहार लगाई है।
हम सभी द्वारा गाय को ‘‘माता’’ कहा जाता है। बच्चों को तो आज भी गाय माता ही लगती है लेकिन शायद हम बड़े होकर भूलते जा रहा कि गाय से हमारा क्या रिश्ता है। गायों की दुर्दशा पर सिर्फ़ आंसू बहाने से कुछ नहीं होगा, यदि गायों के प्रति सचमुच हमदर्दी है तो उन मूक पशुओं की पीड़ा को समझना होगा उन्हें सड़कों भटकने से रोकने के उपाय करने होंगे।
22 October 2015
एक तरफ गाय को माता का दर्जा, दूसरी तरफ उसे आवारा छोड़ देना, ऐसा है हमारा लडभड़ोल
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