लडभड़ोल : 16 मार्च : लडभड़ोल क्षेत्र की प्रसिद्ध माँ सिमसा संतान दात्री माँ के नाम से भी जानी जाती है। संतान दात्री माँ सिमसा का मंदिर मण्डी जिला की तहसील मुख्यालय लडभड़ोल से मात्र नौ किलोमीटर दूरी पर सिमस गांव में स्थित है जो बैजनाथ मंदिर से 32 किलोमीटर दूर है। माता सिमसा का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जहां से दूर.दूर तक सुंदर नजारा दे देखने को मिलता है।
बताया जाता है कि इस गांव में टोभा सिंह नामक व्यक्ति रहता था। एक दिन महाशिवरात्री वाले दिन तरड़ी (कंदमूल) खोदने गया। वह अपने घर से करीब तीन किलोमीटर दूर नागण नामक स्थान पर तरड़ी खोदने लगा। जैसे ही टोभा सिंह अपने औजार से तरड़ी खोदने लगा उसकी पहली चोट जमीन पर मारने से दूध बाहर निकल आया। यह देखकर टोभा सिंह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि तरड़ी अच्छी है और अधिक मात्रा में निकलेगी। जब टोना सिंह ने दूसरी चोट मारी तो जमीन से पानी की धारा निकलने लगी। और तीसरी चोट मारने पर जमीन से खून निकलने लग पड़ा।
टोना सिंह बहुत घबराया हुआ घर वापस आ गया। रात को टोभा सिंह को स्वप्न में माता जी ने दर्शन दिये और कहा कि जिस बात से तू घबराया है मै उसी को हल करने आई हूं। तू सूबह उठकर नहाकर जहां खुदाई कर रहा था वहीं पर जाना। वहां पर खुदाई करने से तुझे एक मूर्ति मिलेगी। उस मूर्ति को पालकी में सजाकर धूमधाम से लाना और जहां पर वह मूर्ति भारी लगने लगे वहीं पर मूर्ति की स्थापना कर मंदिर बनवाना। सुबह उठते ही यह किस्सा टोभा सिंह ने अपने भाइयों को सुनाया।
माँ के आदेशानुसार दोबारा खुदाई करने पर उन्हे देवी की मूर्ति मिली जिसकी लंबाई सात वर्ष की कन्या के बराबर थी। यह मूर्ति आज भी मंदिर में स्थापित मौजूद है। खुदाई के समय की तीन चोटें आज भी देखी जा सकती हैं। मान्यता के अनुसार जिन भक्तों के यहां संतान नही होती है वे नवरात्र में माता सिमसा के दर्शनो के लिये आते है। स्त्रियां जिन्हें संतान की चाह होती है वे मंदिर के प्रागंण में अपना बिछोना बिछााकर सो जाती हैं । यह माँ का चमत्कार है कि जब औरतें सो रही होती हैं तो नीेद में मां सिमसा पूरे श्रृंगार में उन्हें दर्शन देकर आज्ञा अनुसार स्वप्न में फल बांटती हैं। जिस स्त्री को जैसा फल मिलता है उसे वैसी ही संतान होती है। असंख्य निरूसंतान दंपतियों ने मां का आशीर्वाद प्राप्त किया है।
मान्यता के अनुसार एक बार सपना होने के बाद जो महिला फिर से सपने के लिये अपना बिछौना बिछा कर सो जाती है उसे कुछ ही देर बाद चींटियों के काटने जैसा अहसास होने लगता है। यही नही उसके शरीर पर लाल रंग के दाग भी उभरने लगते हैं। अद्भुत बात यह है कि मंदिर में स्थापित माता सिमसा की पिंडी के साथ एक छोटा सा कुंड है। इसमें अनगिनत रंग बिरंगे छोट.छोटे पत्थर हैं। इनका आकार छोटा बड़ा होता रहता है तथा इनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है और इन्हे माता के बच्चों के रूप माना जाता है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार इन पत्थरी रूपी बच्चों को साल में दो बार चैत्र व शरद नवरात्रों से केवल दो चार दिन पहले ही निकाला जाता है और इनकी साफ सफाई कर गंगा जल से नहला कर फिर से कुंड में रख दिया जाता है। इन पत्थरी रूपी माता के बच्चों को देखने के लिये श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।
यहां हर वर्ष चैत्र व शरद नवरात्र के दौरान मेलो लगते है और मेला कमेटी व युवक मंडल सिमस की ओर से भंडारे लगाए जाते हैं। इस साल भी यहां चैत्र नवरात्र महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। बता दें इस बार चैत्र मास नवरात्र का आगाज 18 मार्च से हो रहा है। जिसके लिये मेला कमेटी व पुजारियों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं।
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