लडभड़ोल : कई लोग नेता बनने के चक्कर में लडभड़ोल में विकास न होने की गाथा को बार-बार फेसबुक व व्हाट्सएप्प में शेयर करने में व्यस्त हुए पड़े है और इसे एक अपनी बडी़ उपलब्धि मानकर अपनी ही पीठ थपथपा रहें है, वहीं दूसरी ओर कुछ ताजा आंकड़ों ने एक ज्वलन्तशील मुद्दे को हम सबके बीच लेकर खड़ा कर दिया हैं। ताजा आंकड़ों में जिला मंडी के सबसे कम लिंगानुपात वाले क्षेत्रों में लडभड़ोल पहले नंबर पर है| सबसे कम लिंगानुपात की जो तस्वीर उभर कर सामने आयी है, उसने हमें सोचने को मजबूर कर दिया है कि ”आखिर हम किस ओर जा रहे हैं ? "
लडभड़ोल में लिंगानुपात का अंतर अतिसंवेदनशील स्थिति में पहुंच चुका है।बात-बात पर सरकार को दोष देने वाले हम अपने अधिकारों को याद रखते है लेकिन कर्तव्यों को भूल गए है| कितना अजीब लगता है कि लडभड़ोल तहसील को जो सुख-सुविधाएँ आसानी से मिल जाना थी उसके लिए हमे भारी जद्दोजहद करनी पड़ रही है और आज तीव्र विकास के चलते हमे जहाँ होना चाहिये वहाँ नहीं पहुँच पाने का गम भी झेलना पड़ रहा है। देखा जाये तो लडभड़ोल के लोग राय देने में सबसे आगे है लेकिन अभी तक खुद कोई भी उदारहण पेश नही कर पाए है शायद इसीलिए आज हम यहाँ खड़े है|
वर्ष 2014 में लडभड़ोल में 1000 लड़कों के पीछे सिर्फ 857 लडकिया थी जो पुरे जिला मंडी में सबसे कम थी| लडभड़ोल के बाद संधोल और बलद्वाड़ा का नंबर था| वहां भी हालात लगभग लडभड़ोल जैसे ही थे| पुरे मंडी जिला में सबसे कम लिंगानुपात लडभड़ोल के लिए शर्म का विषय है| अब इसमें हम सरकार को दोष नही दे सकते क्योंकि सरकार ने कभी नही कहा की लडकिया पैदा मत करो| हालांकि कुछ लोगों का बस चले तो वो इसमें भी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दे|
ताजा सर्वेक्षण के अनुसार 845 के बाल लिंग के साथ हमीरपुर का गलोड़ इस सूचि में सबसे नीचे है और उसके बाद 850 के बाल लिंग अनुपात के साथ लडभड़ोल दूसरे नंबर पर है| लडभड़ोल में लिंगानुपात खराब ही नहीं बल्कि खतरे के निशान के भी नीचे चला गया है। ऐसे क्षेत्र "डिमारू" क्षेत्र की श्रेणी में आते हैं। यहाँ "डि" का अर्थ "डॉटर" और "मारू" का अर्थ "मारने वाला "।
जिला प्रशासन की ओर से एक साल पहले शुरू किए मेरी लाडली अभियान के सकारात्मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं। लेकिन लडभड़ोल तहसील में इसका कोई ख़ास परिणाम देखने को नही मिला है|अच्छी शिक्षा का परिणाम तो यही होना चाहिये कि "बेटा ही सब कुछ है" वाली पारम्परिक रुढ़ियों का विनाश हो परंतु हमारे लडभड़ोल में इस सिध्दांत के विपरीत परिणाम सामने आए हैं। समृध्दी ने इतनी ताकत दे दी है कि जन्म से पूर्व ही खर्चिला लिंग परीक्षण कर कन्या होने की स्थिति में उसकी हत्या कर दी जाती है।
जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रयुक्त "हम दो और हमारे दो" का नारा भी इन दिनों हमारे लिए समस्या बनता जा रहा है क्योंकि हर परिवार को जहाँ तक हो सके अब दो लड़के ही चाहिये। एक भी लड़की का सीधा मतलब निकाला जाता है "खर्च" और एक पुत्र का मतलब "आमदानी।" यह सब उन अमीर परिवारों में ज्यादा होता है जहाँ ज्यादा जायदाद होती है। एक गरीब परिवार आज भी उतना ध्यान इस गणित पर नहीं दे पाता है और न ही खर्चिले लिंग परिक्षण को वह वहन कर सकता है। परम्परा और आधुनिक तकनीक का यह अवांछित गठजोड़ समाज में नई विकृति को जन्म दे रहा है।
अपने तमाम सार्वजनिक व निजी समारोहों में जहां हम आये दिन मातृषक्ति की बात करने से चूकते नहीं, वहां इस तरह की बातों का वास्तविक धरातल पर कोई अर्थ नहीं रह जाता।। लड़की मां, बहन और पत्नी होती है। साथ ही वंश को बढ़ाती है। फिर भी हम उनको समझ नहीं पाते हैं। हमें समाज की मानसिकता को बदलने का लागातार प्रयास करने की आवश्यकता है|
समाज में असन्तुलित लिंगानुपात एक गंभीर समस्या है। आज समाज में लड़कों की तुलना में लड़कियों का अंतर निरन्तर बढ़ता जा रहा है ।और इसका परिणाम है समाज में कुवारों की संख्या में प्रतिवर्ष इजाफा हो रहा है ।दूसरा ये समस्या आने वाले 10,15 वर्षो में और विकट होने वाली है ।कारण यह है कि जिन जिन भी युवा साथियो का विवाह पिछले 4,5 वर्षो में हुआ और प्रभु की दया से उनको पहले ही चरण में पुत्ररत्न की प्राप्ती हो गई ऐसे लोगो ने तो आगे सन्तानपत्ती को ऐसे ब्रेक लगा दिया मानो अब अगर इनके यहॉ संतान हो गई तो इनके यहाँ अनाज ही खत्म हो जाएगा ।
कहने का तातपर्य यह है कि समाज के विवाहित युवाओ को कम से कम दो सन्तान का लक्ष्य रखना चाहिए ।इसके दो फायदे होगे अगर लड़की हुई तो लिंगानुपात जैसी समस्या का हल निकलेगा और साथ ही देश हो रही हिन्दू समाज की कमी का भी हल निकलेगा।
आज हर युवा को प्रण करना होगा की पहल हमे ही करना है क्योंकि हमारे पूर्वजो ने तो विरासत हमे दी उसे हमें संजोकर रखना है।
इस समस्या को विकराल होने से पहले इस पर मंथन कर समाजिक स्तर पर इस समस्या को लिया जाए ।
हर सिक्के के दो पहलु होते है तो लड़कियों के बुरे और लड़को के अच्छे पहलु को ही क्यों उजागर किया जाता है। एक लड़की जो अपने परिवार के लिए सब कुछ करने को तैयार रहती है, अपना घर भी सम्भालती है साथ ही दूसरे घर को भी सम्भाल लेती है, ये वही है जो अपने माता पिता से कभी किसी चीज़ की जिद नहीं करती जो मिलता है उसी में खुश रहती है। तो ऐसा क्यों इन्हें गर्भ में ही मार क्यों दिया जाता है , ऐसा क्यों इन्हें गन्दी नजरो से घुरा जाता है, ऐसा क्यों इनका रैप किया जाता है। यह तो सही नहीं है क्योंकि आज के समय में लडकियां कहीं भी पीछे नहीं है हर क्षेत्र में वो अपना नाम कमा रहीं है अपने पिता का नाम रोशन कर रहीं है। आज हर जगह पर लड़कियां अपना ही एक मुकाम कायम कर रहीं है। आज जहाँ पर लड़के अपने कदम पीछे ले लेते है वहां लडकियां आगे बढ़ जाती है। और फिर आप अपने घर में ही देख लीजिए आपके माता और पिता एक दूसरे से कदम मिला मिला कर चलते है और अपने घर को सम्भालते है ठीक उस तरह जैसे एक गाडी एक दो पहिए गाडी एक बैलेंस को बनाए रखते है।
हमारे समाज को भी लड़के और लड़की दोनों की जरूरत है। आपने कभी सोचा है की अगर माँ ना होती तो हमारा भी अस्तित्व नहीं होता। नहीं सोचा तो सोचकर देखिए और सभी को लड़की बचाने के लिए जागरूक कीजिए ये हमारा कर्तव्य है की हम लड़कियों की रक्षा करे। आज अगर एक लड़का किसी लड़के की बहन की रक्षा करता है तो उसकी बहन हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाती है। हमारा सिर्फ यहीं कहना है की बेटियों को पंक्षी बनाओ उड़ने दो, बेटियों को सूरज बनाओ ताकि उनकी रौशनी की वजह से कोई उन्हें छू भी ना सके बल्कि उनके सम्पर्क में आते ही जल जाए। बस इतना दिमाग में रखिए "भगवान बेटियां उन्ही को देता है जिनमे उन्हें पालने की हिम्मत और ताकत होती है"। तो भगवान ने आपको बेटी दी है तो समझ लीजिए भगवान की आप पर मेहरबानी है वो कहते है ना बेटा भाग्य से मिलता है लेकिन बेटियां सौ भाग्य से मिलती है।
22 October 2015
हमारा लडभड़ोल, जहाँ के लोगों के लिए अभी भी "बेटा ही सब कुछ है"
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